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सदस्य:रत्नाकर

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सांड 'सोहदा' नहीं है
सांड 'सोहदा' नहीं है
डॉ.लाल रत्नाकर
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चाह तो रहा था,
कि उसका साथ देता रहूँ
और मध्य काल के
'मलंग' कि तरह
गरीबों कमजोरों में
जाकर
सांड कि तरह!

मुखिया के छोड़े हुए
ग्राम समाजी
'ठप्पा'
लगे सांड कि
'पुट्ठे' कि चमड़ी
पर लाल सलाखों
से दागा हुआ
दरबदर
'मुखिया' को ढोता
और अपने को
'कोसता'
और ये जानता
हुआ कि यह
सोहदा है,
पर पूरे इलाके में
'खबर'
करवा दिया कि
सांड अब सांड
नहीं
'सोहदा' हो गया है ,


भारत की सामाजिक
समझ का ढिंढोरा
पिटता हुआ
यह वह सांड की खूबियाँ
गिनाता हुआ
और उसके सोहदे
हो जाने पर
'उनकी गोष्ठियां कराता'
मुखिया
'जमींदारों' की तरह
दोनों को बुलाता
सांड को बताता
तुम्हारे सोहदे होने की
सारी खबर इनको है,
और वह मुह चिमोड़
कर कहता
'आप ब........को ज्यादा
कस देते हो'
मै तो उन्हें 'सहलाता' हूँ .


मुखिया फनफनाता है
अपनी 'साजिश' को
छुपाने के लिए
अपने कुल के कुलगुरु
की नाजायज
'औलाद' को सहलाता है
और सांड के दागे हुए
'पुट्ठे' को सहलाता नहीं
उसको हल्का हल्का
खुजलाते हुए
दुखाता है .


चलो
अब संभल कर
रहना
सांड मत समझना
बैल की तरह आचरण करना ,
और यह
'मेरे' खानदानी है
और इन पर आंच
नहीं आने दूंगा .
इन्हें कहता हूँ ,
की यह लिखवाकर
ले आयें
---------
जाओ
और लिखवा कर
ले आओ की अब
सांड
'सोहदा' नहीं है.
पर ये खबर
नहीं छपती की
सांड
अब 'सोहदा' नहीं है