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अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,<br>
जब दर्द की प्याली काली रातों में गम आंसू के संग होते हैंघुलता है,<br>
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,<br>
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,<br>
जब पोथे खाली होते है, जब हर हर्फ़ सवाली होते हैं,<br>
जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं,<br>
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है,<br>
जब सूरज का लश्कर चाहत छत से गलियों में देर से जाता है,<br>
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,<br>
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,<br>
क्या लिखते हो दिन भर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,<br>
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,<br>
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाते हैं,में घबराते हैं,<br>
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,<br>
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,<br>
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है,<br>
चुप चुप सारे व्रत करती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है,<br>
जो पगली लडकी कहती है, हाँ मैं प्यार तुझी तुम्ही से करती हूँ,<br>
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,<br>
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,<br>ये सब कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी सार नहीं बाबा,<br>
बस उस पगली लडकी के संग जीना फुलवारी लगता है,<br>
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है |||