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लहराता है उलझे हुए गेसू सा कोई शख़्स।
शाख ऐ बरगद का शजर को देख के वो याद बहुत आयादेखा तो इक हूक सी उट्ठी ,
जब बि था मुझसे मिरे बाजू सा कोई शख़्स।
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