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Kavita Kosh से
बरगद का शजर देखा तो इक हूक सी उट्ठी ,
जब बि बिछड़ा था मुझसे मिरे बाजू सा कोई शख़्स।
ग़ज़लों की बदौलत ही तो वो मुझमें बसा है