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{{KKCatGhazal}}
<poem>
किसकी तसल्ली पर मैं रोकूँ अश्कों के सैलाब मेरेमिरे, देख के दीवानों-सी हालत हँसते हैं अहबाब<ref>दोस्त</ref> मेरे। मिरे
जब से गए हो नहीं चहकती चिड़िया आकर खिड़की में,
और महकना भूल गए हैं बाल्कनी के गुलाब मेरे। मिरे
पूछ रहा है यूँ तू मुझसे राज़ मेरी बर्बादी के,