भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ग़ालिब |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <Poem> वह फ़िराक़ और वह विसा…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<Poem>
वह फ़िराक़ और वह विसाल कहां
वह शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहां
फ़ुर्सत-ए कारोबार-ए शौक़ किसे
ज़ौक़-ए नज़्ज़ारह-ए जमाल कहां
दिल तो दिल वह दिमाग़ भी न रहा
शोर-ए सौदा-ए ख़त्त-ओ-ख़ाल कहां
थी वह इक शख़्स के तसव्वुर से
अब वह र`नाई-ए ख़याल कहां
ऐसा आसां नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहां
हम से छूटा क़िमार-ख़ानह-ए `इश्क़
वां जो जावें गिरिह में माल कहां
फ़िक्र-ए दुन्या में सर खपाता हूं
मैं कहां और यह वबाल कहां
मुज़्महिल हो गए क़ुवा ग़ालिब
वह `अनासिर में इ`तिदाल कहां
<ref> </ref>
</poem>
{{KKMeaning}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<Poem>
वह फ़िराक़ और वह विसाल कहां
वह शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहां
फ़ुर्सत-ए कारोबार-ए शौक़ किसे
ज़ौक़-ए नज़्ज़ारह-ए जमाल कहां
दिल तो दिल वह दिमाग़ भी न रहा
शोर-ए सौदा-ए ख़त्त-ओ-ख़ाल कहां
थी वह इक शख़्स के तसव्वुर से
अब वह र`नाई-ए ख़याल कहां
ऐसा आसां नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहां
हम से छूटा क़िमार-ख़ानह-ए `इश्क़
वां जो जावें गिरिह में माल कहां
फ़िक्र-ए दुन्या में सर खपाता हूं
मैं कहां और यह वबाल कहां
मुज़्महिल हो गए क़ुवा ग़ालिब
वह `अनासिर में इ`तिदाल कहां
<ref> </ref>
</poem>
{{KKMeaning}}