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Kavita Kosh से
रंग दुनिया ने दिखाया है निराला, देखूँ,<br>
है अँधेरे में उजाला, तो उजाला देखूँ <br>
कैसा लगता है तेरा चाहने वाला देखूँ <br>
जिसके आँगन से खुले थे मेरे सारे रस्ते,<br>
हर एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है,<br>
यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है <br>
वही बातें पुरानी थीथीं, वही किस्सा पुराना है,<br>
तुम्हारे और मेरे बीच में फिर से ज़माना है <br><br>