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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
संग्रह=
}}
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<poem>
सारा गाँव एकजुट था, अड़ गयी हवेली फिर
और इक तमांचा सा जड़ गयी हवेली फिर
लालमन की हर कोशिश मिल गयी न मिट्टी में
चार बीघा खेतों में बढ़ गयी हवेली फिर
था गुमान भाषा में अब के हार जायेगी
कुछ मुहावरे लेकिन गढ़ गयी हवेली फिर
मीलों घुप अंधेरे में रात भर चला, फिर भी
भोर में हथेली से लड़ गयी हवेली फिर
नंगे भूखे लोगों की खुल गईं जुबानें जब
आ के उनके पैरों में पड़ गयी हवेली फिर
ज़ोर आज़माइश की, हर किसी ने कोशिश की
एक पल को उखड़ी थी, गड़ गयी हवेली फिर<poem/>
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सारा गाँव एकजुट था, अड़ गयी हवेली फिर
और इक तमांचा सा जड़ गयी हवेली फिर
लालमन की हर कोशिश मिल गयी न मिट्टी में
चार बीघा खेतों में बढ़ गयी हवेली फिर
था गुमान भाषा में अब के हार जायेगी
कुछ मुहावरे लेकिन गढ़ गयी हवेली फिर
मीलों घुप अंधेरे में रात भर चला, फिर भी
भोर में हथेली से लड़ गयी हवेली फिर
नंगे भूखे लोगों की खुल गईं जुबानें जब
आ के उनके पैरों में पड़ गयी हवेली फिर
ज़ोर आज़माइश की, हर किसी ने कोशिश की
एक पल को उखड़ी थी, गड़ गयी हवेली फिर<poem/>