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फिर दिन ढला कि रात, बताओ तो कुछ कहूं

तुम सारे वाक्यात बताओ तो कुछ कहूं


इस वास्ते हूँ चुप कि अधूरी है हर ख़बर

एक एक वारदात बताओ तो कुछ कहूं


दुखियों का इक हुजूम सड़क पर निकल पड़ा

इस भीड़ को बरात बताओ तो कुछ कहूं


आसान जिंदगी पे कहूं क्या, बताऊँ क्या

तुम अपनी मुश्किलात बताओ तो कुछ कहूं


सारी कहानियो में वही दुःख वही घुटन

कोई निराली बात बताओ तो कुछ कहूं


जीवन मरण को बोझ चलो मान भी लिया

किसको मिली निजात, बताओ तो कुछ कहूं


शहरों ने सर्वत अब तो बदल डाली अपनी शक्ल

कैसे हैं जंगलात, बताओ तो कुछ कहूं<poem/>