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शहर का हाल चाल पहले सा

ताज़ा ताज़ा ये साल पहले सा


मौत है पत्ता पत्ता पहले सी

आदमी डाल डाल पहले सा


सब ने शुभकामनाएँ दीं लेकिन

आज भी आटा दाल पहले सा


इन्कलाब आया और गुजर भी गया

जिंदगी का सवाल पहले सा


रोशनी की बहार है, फिर भी

रोशनी का अकाल पहले सा


अब भी माहौल तो वही है मगर

है लहू में उबाल पहले सा ?


ढूंढता हूँ तो अब नहीं मिलता

मुझ में सर्वत जमाल पहले सा<poem/>