भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सदस्य वार्ता:Pankaj Dwivedi

1,409 bytes added, 10:37, 7 सितम्बर 2010
{{Welcome|Pankaj Dwivedi|Pankaj}}
 
क्यों डर रहे हो तुम अब
यह तो निश्चित था
बहुत पहले से ही
शायद बहुत पहले से भी पहले
की तुम्हे छोड़ना है वो सब
जो किसी और को छोड़ कर तुम्हारा
हो गया था
तो फिर क्यों हैं आंसुओं से भरी
तुम्हारी पलकें
क्यों हैं गर्म ये साँसें
क्या बस इस बात पर
जो पहले से ही पराया था
उससे और भी किनारा हो गया है
नहीं अब और मोह नहीं
किसी और किसी से भी नहीं
कुछ भी और कुछ भी नहीं
क्यों की तुम्हे छोड़ना है
उन सभी को
जो छोड़ गए किसी को
हाँ डरना मत
चाहे तुम्हे स्वंय को की
छोड़ना पड़े
पसीना पोंछो और छोड़ दो
सब कुछ
क्यों की ये सब निश्चित है बहुत पहले से ही
शायद बहुत पहले से भी पहले ?