भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीत-1 / मुकेश मानस

No change in size, 13:42, 7 सितम्बर 2010
<poem>
सागर झरने रोयेंगे रोएँगे तो मेरे असुंअन अँसुअन का क्या होगा
हम तुम ऐसे बिछ्ड़ेगे तो महामिलन का क्या होगा
मैंने मन के आंगन आँगन में, प्रेम सुमन खिलाये खिलाए थेतुमने अपनी खुशबु ख़ुशबु से, जो आकर के महकाये महकाए थेतुम प्रेम नदी ही सूख गई गईं तो, इस उपवन का क्या होगा? हम्….………………
मैंने अपने अंतर को, मंदिर एक बनाया था
तुमको उस मंदिर में एक देवी सा सजाया था
जो तुमको अर्पित करना था, अब उस जीवन का क्या होगा? हम ….……।
1988
<poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits