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{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कोई भी दिन
मेरे और तुम्हारे बीच
छलकती हुई
उस चाय की तरह
आ जाएगा
जो एक ही
केतली से ढकने के बावजूद
दो अलग अलग स्वादों में
बदल जाएगा
विदाई के क्षणों की छाया में
कैसे रंग जाते हैं चीज़ों के रुख़
स्वाद बदल लेती हैं
चीज़ें भी अपना!
<poem>
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|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कोई भी दिन
मेरे और तुम्हारे बीच
छलकती हुई
उस चाय की तरह
आ जाएगा
जो एक ही
केतली से ढकने के बावजूद
दो अलग अलग स्वादों में
बदल जाएगा
विदाई के क्षणों की छाया में
कैसे रंग जाते हैं चीज़ों के रुख़
स्वाद बदल लेती हैं
चीज़ें भी अपना!
<poem>