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आत्‍मकथ्‍य / जयशंकर प्रसाद

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उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिलाकर हँसते हँसतने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देकर जाग गया।
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