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{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सन्तों की बानी सा
अपनी हर बात में लासानी सा
फ़क़ीरी में ठाठ में
-रूहानी सा
शब्दों की धरती पर
जीवन जिया उस ने
तुलसी निराला,कबीर और मीरा के
मर्म और मा’नी सा
उस ने जिया जीवन
पहाड़ और समुद्र बीच
धूप और पानी सा
सन्तों की बानी सा
उस ने जिया जीवन
अधूरे कथानक की
पूरी कहानी सा
सन्तों की बानी सा
*कवि त्रिलोचन के ध्यान में लिखी गई पंक्तियाँ
<poem>
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|संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द प्रसाद
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सन्तों की बानी सा
अपनी हर बात में लासानी सा
फ़क़ीरी में ठाठ में
-रूहानी सा
शब्दों की धरती पर
जीवन जिया उस ने
तुलसी निराला,कबीर और मीरा के
मर्म और मा’नी सा
उस ने जिया जीवन
पहाड़ और समुद्र बीच
धूप और पानी सा
सन्तों की बानी सा
उस ने जिया जीवन
अधूरे कथानक की
पूरी कहानी सा
सन्तों की बानी सा
*कवि त्रिलोचन के ध्यान में लिखी गई पंक्तियाँ
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