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{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द प्रसाद
}}
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<poem>
पहले-पहल उन्होंने आँका
हमारे हाथों का मोल
फिर आँखों के अनछुए
सपने अन-मोल
फिर; पेट की आग को
देख गया छू कर
टटोल,टटोल
बोल,मिट्टी के माधो
अब तो बोल
<poem>
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|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द प्रसाद
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पहले-पहल उन्होंने आँका
हमारे हाथों का मोल
फिर आँखों के अनछुए
सपने अन-मोल
फिर; पेट की आग को
देख गया छू कर
टटोल,टटोल
बोल,मिट्टी के माधो
अब तो बोल
<poem>