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Kavita Kosh से
किसी कविता के होने से
सड़क-जाम का बहाना बता
माफी और रहम के पात्र बनातेबनते.
हादसों के रोजनामचे में
कवितायेँ ही कविताएँ
और सिर्फ कवितायेँ होतीं,
कविताओं की भयानकता पर
डरी-सहमी औरतें
घरों की खिड़कियों से
शहर में कई ज़गह
कई कविताओं के
या पुलिस को इत्तला करें.'
कि कवितायेँ हादसा हैं
तो वे कहीं-कहीं न होतीं
न गाँव में
न नगर में,
ममता और प्रेम दूभर हो जाते
बुद्ध और गांधी अप्रिय हो जाते,
क़ानून ज़मादार का कूड़ा न होता
लोकतंत्र मदारी का ज़मूरा न होता
जो अपनी काली पत्ती पट्टी वाली आँखों से
घटित होने से पहले
हादसों को
बारूदों से गुलाब खिलते
रेगिस्तानों में खेत-खलिहान संवरते
आतंकवादी सरसों की फासला फसल उगाते
और सीमा-पार से घुसपैठिए
विश्व-शान्ति के परचम