{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=क़तील शिफ़ाई}}[[Category:गज़ल]]<poem>लिख दिया अपने दर पे किसी ने, इस जगह प्यार करना मना है<br>
प्यार अगर हो भी जाए किसी को, इसका इज़हार करना मना है
उनकी महफ़िल में जब कोई आये, पहले नज़रें वो अपनी झुकाए<br>
वो सनम जो खुदा बन गये हैं, उनका दीदार करना मना है
जाग उठ्ठेंगे तो आहें भरेंगे, हुस्न वालों को रुसवा करेंगे<br>
सो गये हैं जो फ़ुर्क़त के मारे, उनको बेदार करना मना है
हमने की अर्ज़ ऐ बंदा-परवर, क्यूँ सितम ढा रहे हो यह हम पर<br>
बात सुन कर हमारी वो बोले, हमसे तकरार करना मना है
सामने जो खुला है झरोखा, खा न जाना क़तील उसका धोखा<br>
अब भी अपने लिए उस गली में, शौक-ए-दीदार करना मना है
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