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ऐसा मंज़र के जैसे ख़ुदा सामने ।
फूल महका हुआ दिल में इम्कान <ref>संभावना</ref> का
और समंदर लहकता हुआ सामने ।
आज 'अजमल' है चुप-चुप खड़ा सामने ।
</poem>
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