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|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
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वंदना के इन स्वरों मेमें,एक स्वर मेरा मिला लो।
बंदिनी माँ वंदिनी मां को न भूलो,राग में जब मत्त झूलो;,अर्चना के रत्नकण में,एक कण मेरा मिला लो।
जब हृदय का तार बोले,
श्रृंखला शृंखला के बंद खोले;, हो जहाँ हों जहां बलि शीश अगणित,एक शिर मेरा मिला लो।
</poem>