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Kavita Kosh से
यहीं से
हां, यहीं से
शुरू होती है --उसकी कहानी,
इसमें घर है,
परिवार है,
पर, सांसों की दुधारी तलवार
उन बहानों का गला घोंट देती है
इसलिए , समय से संग्राम कर रहे
उन कुपात्रों से
कहता हूं मैं
अपनी रखैल संग रात गुजारता है,
फिर, सुबह धारदार किरणों के साथ लौट
उस पर दुतकारों की गोलियां दागता है, पर, वह मिसालिया हिन्दुस्तानी औरत है--पागलपन की हद तक पतिव्रता और निष्ठावान,
जो सस्ते किराए की छत पर
निष्ठुर मौसम की डांट-डपट सुनती हुई