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Kavita Kosh से
धर्म क्या उनका है, क्या जात है ये जानता कौन
घर ना जलता तो उन्हे उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये
शाकाहारी हैं मेरे दोस्त, तुम्हारे खन्ज़रख़ंजरतुमने बाबर की तरफ़ फ़ैंके फेंके थे सारे पत्थरहै मेरे सर की खताख़ता, ज़ख्म ज़ख़्म जो सर में आये
पांव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
कि नज़र आये वहां खून ख़ून के गहरे धब्बे
पांव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे