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सूरज सुबह का
क्या पता कब दिन ढला,
कब शाम हो आयी आई
नही है अब नही है
एक भी पिछडा पिछड़ा सिपाहीआँिधयो आँधियों की फौज का बाकी
हमारे बीच
खड़कता है न हिलता है
हवा का नाम भी तो हो
हमें अब आँिधयो आँधियों के शोर के बदले मिली है हब्स की बेचैन खामेशी ख़ामोशी
न जाने क्या हुआ सहसा,
ठिठक कर,
साँस रोके रह गयी गई आँखे गडाये गडाए
गदर्
दीवार को ही देखती -सी
प्रकृति सारी
दिखेगा क्या
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