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बचपना इस आस में/ सर्वत एम जमाल

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बचपना इस आस में
जिन्दगी मधुमास में
उम्र भर संत्रास में
और फिर इतिहास में

हर नगर में शोर है
बस हवा का जोर है
रोशनी किस ओर है
रात जैसी भोर है

कदम थक जाते कहीं
आँख झुक जाती कहीं
आकाश भी खोता कहीं
जमीं हिल जाती कहीं

लहर भी उछल पड़ी
मौत क्यों मचल पड़ी
बादलों की अटल झड़ी
या जिन्दगी अचल खड़ी

सपने मर जाते हैं क्या
पापी तर जाते हैं क्या
भूख जल जाती है क्या
पीड़ा मर जाती है क्या ?</poem>