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<poem>
आस्तीन क्या जेब में रहिये
दूर से ज़हर यूं मत उगलिए

आप नसीमे सहर नहीं हैं
आंधी हैं तो तेज ही चलिए

यहीं दफीने हैं जीवन के
मिट्टी थोड़ी और पलटिये

कौन सी बात थी तूफानों में
सहम गए हैं वक्त के पहिये

राह अभी हमवार नहीं है
पाँव जमीं पर देख के रखिये

तुझ पर भारी अपने गहने
हम पर अपने दाल और दलिये

सब मंजिल की फिक्र में गुम हैं
आपका क्या है बैठे रहिये

सर्वत अब अपने शेरों में
थोड़ी सी रंगीनी भरिये</poem>
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