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<poem>
आँख हैरान ज़हन खाली है
रात ने क्या सहर निकली है

आज जब अपना हाथ खाली है
हर किसी ने नजर चुरा ली है

जिसकी गर्मी नफस नफस है आज
हमने वो आग खुद ही पाली है

इन थपेड़ों से खौफ क्या खाना
ये हवा अपनी देखी-भाली है

अब चिरागों को रौशनी दे दो
तीरगी ने कमां उठा ली है

सब बराबर हों कोई गम न रहे
फिक्र ये कितनी भोली-भाली है

दिन बुरे भी हों तो ये हैं दिन ही
रात रोशन भी हो तो काली है

अब कनाअत की फिक्र कर सर्वत
तूने शोहरत बहुत कमा ली है </poem>