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त्रिवेणी 2 / गुलज़ार

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{{KKRachna|रचनाकार=गुलज़ार|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार}} <poem>
सब पे आती है सब की बारीसे
मौत मुंसिफ़ है कम-ओं-बेश नहीं
'पांच सौ गाँव बह बह गए इस साल'
</poem>
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