भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
}}
<poem>
सब पे आती है सब की बारीसेबारी सेमौत मुंसिफ़ है कम-ओंओ-बेश नहीं
ज़िन्दगी सब पे क्यूँ नहीं आती
दाने-दाने पे नाम लिखा है
'सेठ सूद्चंद सूदचंद मूलचंद आक़ा'
उफ़! ये भीगा हुआ अख़बार
पेपर वाले को कल से चेंग चेंज करो
'पांच सौ गाँव बह बह गए इस साल'
</poem>