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घुटन / गुलज़ार

19 bytes added, 14:08, 23 सितम्बर 2010
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
}}{{KKCatNazm}}
<poem>
जी में आता है कि इस कान में सुराख़ करूँ
खींचकर दूसरी जानिब से निकलूँ निकालूँ उसकोसारी की सारी निचोडूं निचोडूँ ये रगें साफ़ करूँभर दूँ रेशम की जुलाई जलाई हुई भुक्की इसमें
कह्कहाती हुई भीड़ में शामिल होकर
मैं भी एक बार हँसूहँसूँ, खूब हँसूहँसूँ, खूब हँसू
</poem>