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आत्मा की शांति / पूनम तुषामड़

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<poem>
वह बुला रही थी
पडौस की सभी लड़कियों को
उन्हें प्यार से बैठाती
तिलक लगाती,
पांव पखारती
पूड़ी, खीर व सब्जी की थाली
उनके सम्मुख रखती जाती
पूछने पर भारी मन से
सिर्फ इतना बताती -
पांडे जी की
आत्मा की शांति के लिए
कन्या भोज करा रही हूं।
मुझे देखा तो आंखों में आंसू छलक आए
मैं भी द्रवित हो उठी
तभी मेरी नज़र
सड़क पर झाडू लगाती
छोटी लड़की पर पड़ी
और उसके प्रति भी
मेरी संवेदना उमड़ पड़ी
आत्मा की शांति
मैंने उनसे कहा-
इसे भी बुलाकर खिला दो
पुण्य लगेगा
इतना सुनते ही सूख गई
उसकी अश्रु-धारा
सिकुड़ गई भौहें
छीः यह तो भंगी है।
</poem>