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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : तुहमतें चन्द अपने ज़िम्मे धर चलेज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[ख़्वाजा मीर दर्दशहरयार]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
तुहमतें चन्द अपने ज़िम्मे धर चले ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें किसलिए आये थे हम क्या कर चले ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
ज़िंदगी सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है या कोई तूफ़ान हैहम तो इस जीने के हाथों मर चले हमें
क्या हमें काम इन गुलों याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से ऐ सबाएक दम आए इधर, उधर चलेरात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें
दोस्तो देखा तमाशा याँ हर मुलाक़ात का बसअंजाम जुदाई क्यूँ है तुम रहो अब हम तो अपने घर चले आह!बस जी मत जला तब जानियेजब कोई अफ़्सूँ तेरा उस पर चले शमअ की मानिंद हम इस बज़्म मेंचश्मे-नम आये थे, दामन तर चले  ढूँढते हैं आपसे उसको परेशैख़ साहिब छोड़ घर बाहर चले हम जहाँ में आये थे तन्हा वलेसाथ अपने अब उसे लेकर चले जूँ शरर ऐ हस्ती-ए-बेबूद याँबारे हम भी अपनी बारी भर चले साक़िया याँ लग रहा है चल-चलाव,जब तलक बस चल सके साग़र चले 'दर्द'कुछ मालूम हर वक़्त यही बात सताती है ये लोग सबहमेंकिस तरफ से आये थे कीधर चले</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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