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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>किताबों में मेरे फ़साने ढूंढते ढूँढते हैं, नादां हैं गुज़रे ज़माने ढूंढते ढूँढते हैं । 
जब वो थे तलाशे-ज़िंदगी भी थी,
 अब तो मौत के ठिकाने ढूंढते ढूँढते हैं । 
कल ख़ुद ही अपनी महफ़िल से निकाला था,
आज हुए से दीवाने ढूँढते हैं ।
आज हुए से दीवाने ढूंढते हैं ।  मुसाफ़िर बे-ख़बर हैं तेरी आंखों आँखों से, तेरे शहर में मैख़ाने ढूंढते ढूँढते हैं । 
तुझे क्या पता ऐ सितम ढाने वाले,
हम तो रोने के बहाने ढूँढते हैं ।
हम तो रोने के बहाने ढूंढते हैं ।  उनकी आंखों आँखों को यूं यूँ ना देखो ’फ़राज़’, नए तीर हैं, निशाने ढूंढते ढूँढते हैं ।</poem>
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