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{{KKRachna
|रचनाकार=राहत इन्दौरी
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>काली रातों को भी रंगीन कहा है मैंने
तेरी हर बात पे आमीन कहा है मैंने

तेरी दस्तार पे तन्कीद की हिम्मत तो नहीं
अपनी पापोश को कालीन कहा है मैंने

मस्लेहत कहिये इसे या के सियासत कहिये
चील-कौओं को भी शाहीन कहा है मैंने

ज़ायके बारहा आँखों में मज़ा देते हैं
बाज़ चेहरों को भी नमकीन कहा है मैंने

तूने फ़न की नहीं शिजरे की हिमायत की है
तेरे ऐजाज़ को तौहीन कहा है मैंने
<poem>
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