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|रचनाकार=दाग़ देहलवी
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<poem>
इस अदा से वो वफ़ा करते हैं
कोई जाने कि वफ़ा करते हैं
इस अदा हमको छोड़ोगे तो पछताओगेहँसने वालों से वो वफ़ा करते हैं<br>कोई जाने कि वफ़ा हँसा करते हैं<br><br>
हमको छोड़ोगे तो पछताओगे<br>ये बताता नहीं कोई मुझकोहँसने वालों से हँसा दिल जो आ जाए तो क्या करते हैं<br><br>
ये बताता हुस्न का हक़ नहीं कोई मुझको<br>रहता बाक़ीदिल जो आ जाए तो क्या हर अदा में वो अदा करते हैं<br><br>
हुस्न का हक़ नहीं रहता बाक़ी<br>किस क़दर हैं तेरी आँखे बेबाकहर अदा में वो अदा इन से फ़ित्ने भी हया करते हैं<br><br>
किस क़दर हैं तेरी आँखे बेबाक<br>इस लिए दिल को लगा रक्खा हैइन से फ़ित्ने भी हया करते हैं<br><br>इस में दिल को लगा रक्खा है
इस लिए दिल को लगा रक्खा है<br>इस में दिल को लगा रक्खा है<br><br> 'दाग़' तू देख तो क्या होता है<br>जब्र पर जब्र किया करते हैं <br><br/poem>
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