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उमड़ सृष्टि के अन्तहीन अम्बर से,<br>
मुक्त शिशु पुनः पुनः एक ही राग अनुराग।<br><br>
(कविता संग्रह, "परिमल" से)
[[बादल राग / भाग ५ / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"|अगला भाग >>]]