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|संग्रह=मिट्टी की बारात / शिवमंगल सिंह सुमन
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तुम तो यहीं ठहर गये
ठहरे तो किले बान्धो
मीनारें गढ़ो
उतरो चढ़ो
उतरो चढ़ो
कल तक की दूसरों की
आज अपनी रक्षा करों,
मुझको तो चलना है
अन्धेरे में जलना है
समय के साथ-साथ ढलना है
इसलिये मैने कभी
बान्धे नहीं परकोटे
साधी नहीं सरहदें
औ' गढ़ी नहीं मीनारें
जीवन भर मुक्त बहा सहा
हवा-आग-पानी सा
बचपन जवानी सा।
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