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ऑंख मलते<br />
उठा सोया चांद<br />
बादलों के बीच में रस्ते हुए।<br />

जब कभी सोचा<br />
सुनाऊ गीत<br />
तुम्हें देखा काम में फॅंसते हुए।<br />

अष्टगंधा<br />
हो गयी छूकर तुम्हें<br />
हवा में उड़ती हुई ये धूल,<br />

मौसमों का<br />
रंग रूमानी हुआ<br />
आ गये हम छोड कर स्कूल,<br />

शाख पर<br />
इन खिले फूलों ने<br />
तुम्हें देखा और गुलदस्ते हुए।<br />

पांव लहरों पर<br />
हिलाते धूप में<br />
क्या तुम्हें लगता नहीं है डर,<br />

जब कभी हमने<br />
गुलाबी मन पढा<br />
डायरी में लिखे स्वर्णाक्षर,<br />

पार करती<br />
तुम पहाड़ों को<br />
तुम्हें देखा झील में धॅंसते हुए।<br />

रोज घर में<br />
धूप, पानी, छॉंह<br />
तुम सजाती हो सुबह से शाम,<br />

पांव थक जाते<br />
मगर उफ! तक नहीं<br />
रात होने तक कहां आराम,<br />

खिलखिलाता है<br />
समूचा घर<br />
देखता है जब तुम्हें हॅंसते हुए। <br />