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वह, कविताएँ और मैं / अमरजीत कौंके
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07:02, 10 अक्टूबर 2010
कितनी ही धराएँ
कितने ग्रह-नक्षत्र
कितने सूर्य
जुगनूओं
जुगनुओं
की भाँति
जलते बुझते
अनिल जनविजय
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