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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू
}}
<poem>
अँधेरे में
दो छोटी मोमबत्तियाँ
आधी जलीं
पतंगों से खिलवाड़ करती चलीं
एक रेत पर बैठी हाथ लहरा रही
लहरें उमड़तीं आ रहीं
दूसरी बैठी उसे एकटक निहार रही
एक की लौ इस वक्त आसमान
दूसरी नाच रही मदमत्त
साथ हवा साँ साँ
लौ, लपटें और बहाव
कब से, कब से!
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू
}}
<poem>
अँधेरे में
दो छोटी मोमबत्तियाँ
आधी जलीं
पतंगों से खिलवाड़ करती चलीं
एक रेत पर बैठी हाथ लहरा रही
लहरें उमड़तीं आ रहीं
दूसरी बैठी उसे एकटक निहार रही
एक की लौ इस वक्त आसमान
दूसरी नाच रही मदमत्त
साथ हवा साँ साँ
लौ, लपटें और बहाव
कब से, कब से!