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|रचनाकार=लाल्टू
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मैं तुमसे क्या ले सकता हूँ?
अगर ऐसा पूछो तो मैं क्या कहूँगा.
बीता हुआ वक्त तुमसे ले सकता हूँ क्या?
शायद ढलती शाम तुम्हारे साथ बैठने का सुख ले सकता हूँ.
या जब थका हुआ हूँ, तुम्हारा कहना,
तुम तो बिल्कुल थके नहीं हो, मुझे मिल सकता है.

तुम्हें मुझसे क्या मिल सकता है?
मेरी दाढ़ी किसी काम की नहीं.
तुम इससे आतंकित होती हो.
शायद असहाय लोगों के साथ जब तुम खड़ी होती हो, साथ में मेरा साथ तुम्हें मिल सकता है.
बाकी बस हँसी-मज़ाक, कभी-कभी थोड़ा उजड्डपना, यह सब ऊपरी.

यह जो पत्तों की सरसराहट आ रही है, मुझे किसी की पदचाप लगती है,
मुझे पागल तो नहीं कहोगी न?
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