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Kavita Kosh से
सदियों से रुदन कर रही, न सिसकियां तुमने सुनी,<br>
जर्जर हुई हर सांस साँस है, टूटेगी जाने किस घड़ी,<br>
चेतावनी यह समझो प्रलय की घड़ी आ रही।<br>
मुझको हरित बनाओ अब, पुकार यह लगा रही ॥<br><br>
मुझ पर बढ़ा जो भार है,उसको जरा घटाओ तुम,<br>
आतंक को तुम रोक दो, यूं यूँ रक्त न बहाओ तुम,<br>खुशहाल हों सबही यहांयहाँ , मैं मन्नतें मना रही।<br>
मुझको हरित बनाओ अब, पुकार यह लगा रही॥<br><br>
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