भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसे देखा / लोग ही चुनेंगे रंग

679 bytes added, 09:37, 10 अक्टूबर 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू }} <poem> ख…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू
}}
<poem>

खिलने को जन्मा
दिन
मुर्झाता मैंने देखा
उसे देखा
दिन
खिलने को जन्मा

दिन जन्मा
एक बार फिर मैं जन्मा
उसे देखा
देखा चराचर
खिल रहे
अपने-अपने दुखों में बराबर
दिन खिलता
रोता मैंने देखा
दिन
खिलने को जन्मा.
778
edits