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सात कविताएँ-7 / लाल्टू

110 bytes removed, 05:54, 11 अक्टूबर 2010
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मैं कौन मुड़ मुड़ उसके लिए दढ़ियल बरगद बनने की प्रतिज्ञा करता हूँ? तुम कौन हो?.मैं एक पिता देखता हूँ पितृहीन प्राणसन् 2000 में वह मेरी दाढ़ी खींचने पर धू धू लपटें उसे घेर लेंगीं.ग्रहों मेरी नियति पहाड़ बनने के अलावा और कुछ नहीं.उसकी खुली आँखों को पार कर मैं आया सिरहाने तले सँजोता हूँ.एक भरपूर जीवन जीता बयालीस की बालिग उमरदेख रहा हूँ एक बच्चे को मेरा सीना चाहिएउड़नखटोले पर बैठते वक्त वह मेरे पास होगा.
उसकी निश्छलता की लहरों में युद्ध सरदारों सुनो! मैं काँपता हूँमेरे एकाकी क्षणों उसे बूँद बूँद अपने सीने में उसका प्रवेश सृष्टि का आरम्भ हैसींचूँगा.मेरी दुनिया बनाते हुए वह मुस्कराता हैसुनता हूँ बसन्त के पूर्वाभास उसे बादल बन ढँक लूँगा. उसकी आँखों में पत्तियों की खड़खड़ाहटआँसू बन छल छल छलकूँगा.दूर दूर से आवाज़ें आती हैं उसके होने के उल्लास होंठों मेंविस्मय की ध्वनि तरंग बन बजूँगा। आश्चर्य मानव सन्तानअपनी सम्पूर्णता के अहसास से बलात् दूरउँगलियाँ उठाता है, माँगता है भोजन के लिए कुछ पैसेतुम्हारी लपटों को मैं लगातार प्यार की बारिश बन बुझाऊँगा.
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