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 जब लेन्स लेंस सचमुच ढँका जाता हैखत्म ख़त्म हो जाती है एक दुनिया
अचानक आ गिरता है अन्धकार
अब तक रौशन समाँ में
सँभाल कर रखती है इन दोस्तों को
कि अगली किसी रौशन महफिल में
फिर हाजिर हाज़िर हो सके वह
इधर से उधर जाती और वापस आती
ब्रह्माण्ड की नज़रें साथ उसके घूमतीं
सावधान कदमों से सँभाले हुए भार
नियत समय में पार करती
रोशनी से भरा अन्धकार.</poem>
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