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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=जयकृष्ण राय तुषार}}{{KKCatNavgeet}}<poem>भोर की पहली<br /> किरन के साथ <br />सूर्यमुखियों की तरह खिलना।<br />खिलना ।फिर इन्हींमेरून होठों मेंवादियों में कल हमें मिलना ।
फिर इन्हीं<br />पत्थरों पर मेरून होठों में<br />बैठकर चुपचापवादियों में कल हमें मिलना।<br />हम सुनहरे वक़्त के सपने बुनेंगे,दाँत से नाखूनतुम मत काटनाहम महकते फूल शाखों से चुनेंगे,कैनवस परछवि उतारेंगे तुम्हारीमुस्कराना मगर मत हिलना ।
पत्थरों पर<br /> ओस मेंबैठकर चुपचाप<br />भींगे हुए ये पाँवहम सुनहरे वक्त फैलाकर के सपने बुनेंगेधूप में तुम सेंकना,<br />भैरवी से केशजब तुम खोलनाहमें दे देना रिबन मत फेंकना ।आज सारा दिन तुम्हारा हैशाम से कह दो नहीं ढलना ।
दांत से नाखून<br />
तुम मत काटना<br />
हम महकते फूल शाखों से चुनेंगे,<br />
कैनवस पर<br /> छवि उतारेंगे तुम्हारी<br />मुस्कराना मगर मत हिलना,<br /> ओस में<br />भींगे हुए ये पांव<br />फैलकरके धूप में तुम सेंकना,<br /> भैरवी से केश<br />जब तुम खोलना<br />हमें दे देना रिबन मत फेंकना।<br />आज सारा दिन <br />तुम्हारा है<br />शाम से कह दो नहीं ढलना।<br />  झील में <br />खिलते हुए ताजे ताज़े कमल<br />चांदनी चाँदनी रातें तुम्हीं से हैं,<br /> उत्सवों के दिन<br />अकेलापन<br />प्यार की बातें तुम्हीं से हैं,<br />तुम्हीं से <br />ये मेघ उजले दिन<br />है टिमटिमाते दिये का जलना।जलना ।<br /poem>
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