भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
महापरिवर्तनकारी दौर में,
जबकि विदेशों में
अपने नामूनेदार नमूनेदार जिस्म की नुमाइश लगातीं
भारतीय विश्व सुंदरियां
ऐलान करती जा रही हैं
उससे रिसते
मूसलाधार रज से
बच्च्चियाँ बच्चियां नहीं रह पाएंगी बच्चियां,
हां, मान लो, बेशक!
दीवारें भी होती जा रही हैं गर्भवती,
हजारों-हजारों आचरण-संहिताकार,
बालीवुड-हालीवुड से
अक्षुण प्रेरणा ले
इंटरनेट पर अमृतपान कर
ये सोदाहरण बता रहे हैं
जीने की जीवंत शैलियां
जिन्हें बामशक्कत सीखा है इन्होंने
दूरदर्शन पर प्रसारित अन्त्याक्षारियों अन्त्याक्षरियों से.