भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
615 bytes removed,
20:24, 5 अप्रैल 2011
|संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ की देह / केदारनाथ अग्रवाल
}}
{{KKAnthologyDeath}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैंने तन दे दिया अब एक हो गया हैपरेशानियों कोबूँदों में बिखरा हुआ भारतचिचोरने के लिएमन दे दिया है मैंनेबल का सागरबंदूक मारने वाले जवानों कोदूने मन सेदेश की लड़ाई लड़ने के लिएशत्रु को परास्त करने के लिएकमजोर अब प्रबल हो जाएगागया हैतन तो क्यामन तो अजय हो जाएगाखुल गई हैं तहेंइस लड़ाई मेंखुलती जा रही हैं राहेंभविष्य एक-के लिए-बाद एक;स्वाभिमान सेजय का ज्वारनई जिंदगी जीने के लिएनाव से आदमी बन जाने के लिएप्रकाश सेअंधकार भगाने के लिएदेह आ गया है पानी में दीपक जलाने के लिएनेह में फूल खिलाने के लिएसंकट और अंधकारमौत की आ गई है मौतएक जीवन का साथ आए हैंदे रहा है शौर्यकुछ दिन मेंएक साथ जाएँगेभारत को छोड़जीता जीवनकहीं और विलय जाएँगेहारी मौत
'''रचनाकाल: १८-०९-१९६५'''
</poem>