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|रचनाकार=मनोज भावुक
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
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होखे अगर जो हिम्मत कुछुओ पहाड़ नइखे
मन में जो ठान लीं तऽ कहँवाँ बहार नइखे
ई ठीक बा कि नइया मँझधार में बा डोलत
बाकिर, कही ई कायर लउकत किनार नइखे
जिनिगी चले ना कबहूँ सहयोग के बिना जब
कइसे कहा ई जाला केहू हमार नइखे
कुछ लोग नीक बाटे तबहीं टिकल बा धरती
कइसे कहीं कि केहू पर एतबार नइखे
कबहूँ त भोर होई, कबहूँ छँटी कुहासा
'भावुक' ई मान लऽ तू आगे अन्हार नइखे
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