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|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली
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चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा
 होजाय हो जाय पराधिन नहीं गंग की धारा
गंगा के किनारों को शिवालय ने पुकारा
 
हम भाई समझते जिसे दुनियां में उलझ के
वह घेर रहा आज हमें वैरी बैरी समझ के  
चोरी भी करे और करे बात गरज के
बर्फों मे पिघलने को चला लाल सितारा
 
चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा
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