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Kavita Kosh से
|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली
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बदनाम रहे बटमार मगर,
घर तो रखवालों ने लूटा
नौलाख सितारों ने लूटा
दो दिन के रैन-बसेरे में,
हर चीज चीज़ चुरायी जाती है
दीपक तो जलता रहता है,
पर रात परायी पराई होती हैगलियों से नैन चुरा लायीलाई,
तस्वीर किसी के मुखड़े की
रह गये खुले भर रात नयन,
जुगनू से तारे बड़े लगे,
तारों से सुंदर चांद चाँद लगा
धरती पर जो देखा प्यारे
चल रहे चांद चाँद हर नजर नज़र बचाउड़ रही हवा के साथ नजरनज़र,
दर-से-दर, खिड़की से खिड़की
प्यारे मन को रंग बदल-बदल,
जग में दो ही जने मिले,
इनमें रूपयों का नाता है
जाती है किस्मत बैठ जहांजहाँ
खोटा सिक्का चल जाता है
संगीत छिड़ा है सिक्कों का,
फिर मीठी नींद नसीब कहांकहाँ
नींदें तो लूटीं रूपयों ने,
सपना झंकारों ने लूटा
घर लौट नहीं पर पाता है
ससुराल चली जब डोली तो
बारात दुआरे तक आयीआई
नैहर को लौटी डोली तो,
बेदर्द कहारों ने लूटा।लूटा ।
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